‘बिटिया’ मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
वात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा.
तुतली बोली , डगमग चलना और शरारत
नया -नया नित दिखलाती है खेल-तमाशा.
पल में रूठे – माने, पल में रोये – हँस दे
बिटिया का गुस्सा है ,रत्ती- तोला- माशा.
दिनभर दफ्तर में थककर जब घर मैं आऊँ
देख मुझे मुस्काकर कर दे दूर हताशा.
सुख -दु:ख दोनों धूप -छाँव से आते –जाते
ठहर न पाई इस आंगन में कभी निराशा.
जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )