Saturday, March 19, 2011

पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.

चूँ - चूँ करती , धूल  नहाती     गौरैया.
बच्चे , बूढ़े  , सबको  भाती     गौरैया .
 
कभी द्वार से,कभी झरोखे,खिड़की से
फुर - फुर करती , आती जाती गौरैया .
 
बीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
उस   कोने   में  नीड़   बनाती   गौरैया.
 
शीशे  से  जब  कभी  सामना होता तो,
खुद  अपने   से  चोंच  लड़ाती   गौरैया.
 
बिही   की शाखा से  झूलती लुटिया से
पानी  पीकर  प्यास   बुझाती   गौरैया.
 
दृश्य  सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब  नजर न आती गौरैया.
 
साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा  
सुख वाले दिन बीते,     गाती गौरैया.
 
-अरुण कुमार निगम