Friday, September 28, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ
 
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित

27 – पेड़

भाई , अब सब ठउर –मां, अइसन पेड़ लगाव
खाये खातिर फल मिलय, सुस्ताये बर छाँव
सुस्ताये बर छाँव  , मिलय लकड़ी बारय बर
मिल  जावय  लौड़ी  , दुष्टन - ला खेदारे बर
ठण्डी , शुद्ध , सुगंधित हवा मिलय सुखदाई
सबो  ठउर – मां  अइसन  पेड़  लगावव  भाई.

[ पेड़ – भाई , अब सभी स्थानों में ऐसे पेड़ लगायें जिनसे खाने के लिए फल तथा विश्राम करने के लिये छाँव मिले . जलाने के लिए लकड़ी  तथा दुश्मनों को भगाने के लिए लाठी भी मिल जाये .ठण्डी, शुद्ध, सुगंधित और सुखदायी हवा  मिले. ]

Thursday, September 27, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ
 
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित

26 - राख

नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय
गजब  अन्न  उपजाय ,  राख मां  फूँको-झारो
राखे-मां  कपड़ा – बरतन  उज्जर  कर  डारो
राख  चुपरथे  तन –मां, साधु,संत, जोगी मन
राख  दवाई  आय  , राख –ला नष्ट करो झन.


[ राख – राख को नष्ट ना करें ,यह बहुत ही उपयोगी  है. राख जब खेत में डाली जाती है तो अन्न का उत्पादन बढ़ाती है.राख से ही झाड़-फूँक की जाती है. राख से ही कपड़ेऔर बर्तन उजले होते हैं. साधु,संत और योगी अपने तन पर राख चुपड़ते(लगाते/मलते) हैं.राख दवा भी है, राख को नष्ट ना करें.]