Monday, April 30, 2012

सियानी गोठ



सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

11.    बात

बात बिगाड़य काम ला, बात बनावय काम
रीझयँ-खीजयँ बात मां, जग के लोग तमाम
जग के लोग तमाम, बात मां बस मां आवयँ
बाते  मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावयँ
करो सम्हल के, बात, बात मां झगरा बाढ़य
बने - बुनाये  सबो  काम ला  बात  बिगाड़य.


[ बात :  बात ही काम को बिगाड़ती है, बात ही काम को बनाती है. दुनियाँ के तमाम लोग बात में ही रीझते,खीजते हैं और बात से ही बस में आते हैं. बातों से ही मूर्ख और विद्वान की पहचान होती है. अत: सम्हल कर बात करें क्योंकि बात से ही झगड़ा बढ़ता है तथा बने बनाये सभी काम को भी बात बिगाड़ देती है.]

Saturday, April 28, 2012

50 वीं पोस्ट : सियानी गोठ



 50 वीं पोस्ट :
 सियानी गोठ
 

जनकवि कोदूराम “दलित”

10.    गोबर

गरुवा   के  गोबर  बिनो ,  घुरवा  में   ले  जाव
खूब  सड़ो  के  खेत बर  , सुग्घर खाद बनाव
सुग्घर   खाद   बनाव  ,  अउर   डोली  में  डारो
दुगुना-तिगुना सबो जिनिस मन ला उपजारो
खइता  करो  न  येला , छेना   बना - बना  के
सोन समझ के सइतो   नित गोबर गरुवा के.


[ गोबर – गाय के गोबर को बीन कर घुरवा (गाँव में कचरा जमा करने का नियत स्थान) में ले जायें . इसे अच्छी तरह सड़ा कर खेत के लिये बढ़िया खाद बनावें और डोली में (मेड़ों से घिरा अपेक्षाकृत गहरा, धान का खेत) डालें. सब प्रकार की फसलों का उत्पादन दुगुना-तिगुना कर लें. कंडे बना बना कर इसे (गोबर को) नष्ट न करें. प्रति दिन गाय के गोबर को  स्वर्ण समझ कर  समेटें]

Friday, April 27, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 
 

जनकवि कोदूराम “दलित”

9.    गाय

लछमी साहीं समझ के, पालो घर-घर गाय
चारा खावय अपन हर, तुम्हला दूध पियाय
तुम्हला दूध पियाय , खाद बर देवय गोबर
खींचे नाँगर अउ गाड़ी  , बइला  मन येकर
करथे  अड़बड  - ये बपुरी हर तुम्हर भलाई
पालो घर-घर गाय, समझ के लछमी साहीं.

[ गाय – लक्ष्मी की तरह समझ कर  घर-घर में गाय पालें. यह स्वयं चारा खाती है और तुम्हें दूध पिलाती है. खाद के लिये गोबर देती है. इसके बैल हल और गाड़ी खींचते हैं. गाय बेचारी तुम्हारी बहुत भलाई करती है. अत:
लक्ष्मी की तरह समझ कर  घर-घर में गाय पालें.]

Thursday, April 26, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

8.    धरती

धरती ला हथियाव झन, धरती सबके आय
ये महतारी हर  कभू  , ककरो संग न जाय
ककरो संग  न जाय  ,  सबो ला धरती देवो
करो दान  धरती के ,   पुण्य कमा तुम लेवो
देवो  ये  ला  भूमि - हीन  ,  भाई - बहिनी ला
सिरजिस हे भगवान,सबो खातिर धरती ला.

[धरती  -       भूमि को मत हथियावो ,भूमि सब की है. यह माँ कभी किसी के संग नहीं जाती. सब को भूमि दें. भू-दान करके पुण्य कमा लें. भूमिहीन भाई-बहनों को भूमि बाँटे. ईश्वर ने भूमि का सृजन सबकी खातिर किया है.]

Wednesday, April 25, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

7.     सेवा

सेवा  दाई - ददा के , रोज करत तुम जाव
मानो उन कर बात ला, अउर सपूत कहाव
अउर सपूत कहाव, बनो सुत सरवन साहीं
पाहू  आसिरवाद   , तुम्हार  भला  हो जाही
“करथयँ जे मन सेवा , ते मन पाथयँ मेवा”
यही सोच  के  करो  ,  ददा - दाई  के सेवा.

[ सेवा –  माता पिता की सेवा तुम नित्य करते जाओ, मानो उनकी बात को और सपूत कहाओ. श्रवण की तरह पुत्र बनो, उनका आशीर्वाद पाओगे, तुम्हारा भला हो जायेगा. “जो करते हैं सेवा ,वे पाते हैं मेवा” – यही सोच कर माता-पिता की सेवा करो.]

Monday, April 23, 2012

सियानी गोठ

सियानी गोठ 
 
 
जनकवि कोदूराम “दलित”

6.    कपूत

दाई  -  ददा   रहयँ   तभो  , मेंछा  ला  मुड़वायँ
लायँ  पठौनी अउर उन  डउकी के बन जायँ
डउकी  के  बन  जायँ  , ददा - दाई  नइ भावयँ
छोड़-छाँड़ के उन्हला, अलग पकावयँ-खावयँ
धरम  -  करम सब भूल जायँ भकला मन भाई
बनयँ  ददा  -  दाई   बर   ये    कपूत   दुखदाई.


[कपूत - माता-पिता के जीवित रहते हुये, मूँछ मुंडवाते हैं. ब्याह कर पत्नी लाते हैं और उसी के होकर रह जाते हैं. फिर उन्हें माता-पिता नहीं भाते . माता- पिता को छोड़ कर अलग से पकाते और खाते हैं. ये मूर्ख धर्म-कर्म सब भूल जाते हैं. ऐसे कपूत माता-पिता के लिये दुखदाई होते हैं]

Sunday, April 22, 2012

सियानी गोठ


 
सियानी गोठ
 

जनकवि कोदूराम “दलित”

    5.खेल-कूद

भाई, संझा –बिहिनिया, खेलत-कूदत जाव
चंचल - फुर्तीला  बनो  ,  आलस दूर भगाव
आलस दूर भगाव, किंजर के खुला ठउर मां
काम-बुता नित करत रहो, घर मां, बाहर मां
रहू निरोगी,तन हर तुम्हर सबल बन जाही
सबो किसिम के खेल  रोज तुम खेलो भाई.

[खेल-कूद  : भाई ! सुबह और शाम के समय खेल-कूद करने जाओ. चंचल- फुर्तीले बन कर आलस्य को दूर भगाओ, खुली जगह में सैर करो. घर और बाहर में सक्रिय रह कर ही काम करो. ऐसा करने से तुम सदैव निरोगी रहोगे और तुम्हारा शरीर बलवान बनेगा. भाई ! तुम नित्य हर प्रकार के खेल खेला करो.]

Friday, April 20, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

4.    पोथी

सुग्घर पोथी नित पढ़ो, बनो सुशील-सुजान
ये पक्का गुरु आय अऊ, सच्चाआय मितान
सच्चा आय  मितान , ज्ञान के आय समुंदर
मधुर - मधुर रस पाहू, लहर - लहर के अंदर
रहो  अपन घर मां , या जाओ कोन्हों कोती
पढ़ो सब जगह ध्यान जमा के सुग्घर पोथी.


[ पुस्तक – अच्छी पुस्तकें नित्य पढ़ें , सुशील – सज्जन बनें. ये श्रेष्ठ गुरु हैं और सच्चे मित्र हैं.  अच्छी पुस्तकें ज्ञान का समुंदर हैं  जिसकी लहर-लहर के अंदर मधुर-मधुर रस प्राप्त करेंगे. अपने घर में रहें या अन्यत्र किसी भी स्थान में जायें , सभी जगह ध्यान लगा कर  अच्छी पुस्तकें पढ़ें.]

Wednesday, April 18, 2012

सियानी गोठ

सियानी गोठ 

 
जनकवि कोदूराम “दलित”
3.चतुरा टूरा

भाई, तुम चतुरा बनो, पढ़ो-लिखो दिन–रात
लंद – फंद ला छोड़ के  ,  मानो गुरु के बात
मानो  गुरु के बात, चरित ला अपन सुधारो
दरपन  साहीं मन ला, अपन उजर कर डारो
अच्छा  लइका  बनो , सबो  के करो  भलाई
गुरु गुड़ रहि जाही, शक्कर तुम बनहू भाई.

[चतुर बालक या लड़का – भाई ! तुम चतुर बनो, दिन रात पढ़ो-लिखो. लंद-फंद को छोड़ कर गुरु की बात मानो. अपने चरित्र को सुधार कर अपने मन को दर्पण की भाँति उज्जवल कर डालो. अच्छे बच्चे बन कर सभी की भलाई करो. गुरु गुड़ रह जायेंगे और तुम शक्कर बन जाओगे.]

Monday, April 16, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ
 
जनकवि कोदूराम"दलित"
  
गुरु

गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान
गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान
गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे.
-         जनकवि कोदूराम “दलित”

[ गुरु अज्ञान हरते हैं, गुरु कल्याण करते हैं. गुरु का नित्य आदर करें क्योंकि गुरु महान हैं. ये विद्या का दान देते हैं. माता –पिता के समान ही शिष्य को अपना लेते हैं. गुरु की बात मानें. गुरु ही भलाई करते हैं. ये खूब ज्ञानसिखा कर बुराई का हरण करते हैं.]

Saturday, April 14, 2012


  सियानी गोठ   
                        
जनकवि कोदूराम"दलित"
छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम”दलित” के जीवन काल में प्रकाशित पुस्तक “सियानी गोठ” में छिहत्तर कुण्डलिया संग्रहित हैं.यह पुस्तक 12 मई 1967 में प्रकाशित हुई थी. छत्तीसगढ़ी में सियान का अर्थ होता है बड़े बुजुर्ग या ज्ञानी  और गोठ का अर्थ है बात या सीख.  “सियानी गोठ” की कुण्डलिया हर युग में प्रासंगिक  रहेंगी. जन-हित खातिर प्रकाशित “सियानी गोठ” की कुण्डलिया का प्रकाशन एक श्रृंखलाकेरूपमें प्रारम्भ किया जा रहा है. आशा है आप अवश्य ही पसंद करेंगे
   अरुण कुमार निगम
मोर परिचय
लइका पढ़ई के सुघर, करत हववँ मैं काम
कोदूराम दलितहवय, मोर गँवइहा नाम
मोर  गँवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया !
जन-हित खातिर गढ़े हववँ मैं ये कुण्डलिया
शँउक मु हूँ-ला घलो हवय कविता गढ़ई के
करथवँ काम दुरुग –मां मैं लइका पढ़ई के.

पुस्तक के मुख पृष्ठ पर प्रकाशित कवि का परिचय
मेरा परिचय – मैं बच्चों को पढ़ाने का सुंदर काम करता हूँ. मेरा नाम कोदूराम दलित’(ग्रामीण परिवेश का नाम) है, इस नाम को भाइयों भुला नहीं देना.जन हित खातिर मैंने ये कुण्डलिया गढ़ी हैं, मुझे भी कविता गढ़ने का शौक है, मैं दुर्ग शहर में बच्चों को पढ़ाने का कार्य करता हूँ

सुमिरन
सुमिरन करिहौं नाम ला, सदा तोर भगवान
मनखे चोला रतन-जस, देये हस तैं दान
देये हस तैं दान, करे हस किरपा भारी
तहीं आस गुरु, बंधु, मितान ,बाप ,महतारी
करिहौं सदा सुकरम, दुस्करम ला मैं डरिहौं
देबे मोला तार, तोर नित सुमिरन करिहौं.
{ स्मरण -हे भगवान ! मैं सदा तुम्हारे नाम का स्मरण करूंगा, तुमने रत्न जैसा कीमती मानव शरीर दान में देकर मुझ पर अपार कृपा की है. तुम ही मेरे गुरु, भाई, मित्र तथा माता पिता हो. मैं दुष्कर्मों से बचकर सदा सुकर्म करूंगा. मुझे तार देना ( मुक्ति देना ), नित्य तुम्हारा स्मरण करूंगा.}